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Surya Kant Singh

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    युवक!

    April 17, 2020 / 0 Comments

    युवावस्था मानव-जीवन का वसन्तकाल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हजारों बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियाँ सहस्र धारा होकर फूट पड़ती हैं। मदांध मातंग की तरह निरंकुश, वर्षाकालीन शोणभद्र की तरह दुर्द्धर्ष,प्रलयकालीन प्रबल प्रभंजन की तरह प्रचण्ड, नवागत वसन्त की प्रथम मल्लिका कलिका की तरह कोमल, ज्वालामुखी की तरह उच्छृंखल और भैरवी-संगीत की तरह मधुर युवावस्था है। उज्जवल प्रभात की शोभा, स्निग्ध सन्ध्या की छटा, शरच्चन्द्रिका की माधुरी ग्रीष्म-मध्याह्न का उत्ताप और भाद्रपदी अमावस्या के अर्द्धरात्र की भीषणता युवावस्था में निहित है। जैसे क्रांतिकारी की जेब में बमगोला, षड्यंत्री की असटी में भरा-भराया तमंचा, रण-रस-रसिक वीर के हाथ में खड्ग, वैसे…

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    Surya Kant Singh

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    अब यह बात स्थापित हो चुकी है कि भारत मंदी की चपेट में आ रहा है। तमाम उद्योगपतियों से लेकर बड़े औद्योगिक घरानों तक ने बयान जारी कर इस विषय पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने की असफल कोशिश की है। टेक्सटाइल और चाय उद्योग ने मंदी की खबरें न दिखाए जाने से तंग आ कर विज्ञापन ही दे डाला। अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी इस विषय को मुखर तौर से उठाया है। याद रहे कि राजन ही थे जिन्‍होंने 2007-08 की आर्थिक मंदी से साल भर पहले ही ‌‌‌‌‌‌‌‌अमरीकी बैंकरों को चेता दिया था। मंदी से औद्योगिक उत्पादन लगातार गिर रहा है और नौकरियां जा रही हैं। बेरोज़गार हो…

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    Surya Kant Singh

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