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अर्थार्थ : उदारीकरण का दशक
खालिस्तान आंदोलन के लिये भिंडरावाले का समर्थन किया जाना पार्टी विशेष के राजनीतिक स्वार्थ साधने का तरीका था, लेकिन उसके कारण हुई हिंसा ने यह साबित किया कि साम्प्रदायिक उन्माद एक ऐसे जिन्न की तरह है जिसे चिराग से बाहर काबू नहीं किया जा सकता। फिर भी तृष्णा में लिप्त नेता इसका निरंकुश होकर इस्तेमाल करते रहे हैं। इसी का परिणाम है हमारा खंडित समाज जो जाति-धर्म का भेद होने और अब तो केवल विचारों की भिन्नता होने पर किसी की भी हत्या करने पर आमादा है।