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    नफरत की राजनीति जनता के लिए आकर्षक क्यों है?

    April 26, 2020 / 0 Comments

    ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट में “ग्लोबल स्विंग टू द राइट | दक्षिणपंथ की ओर दुनिया का झुकाव ” पर अर्जुन अप्पादुरई के सार्वजनिक व्याख्यान की एक रिकॉर्डिंग दुनिया भर में सत्तावादी लोकलुभावन नेताओं और आंदोलनों के हालिया उदय का विश्लेषण करती है। “द रिवाल्ट ऑफ द एलाइट्स” पर उनका नया अंश दुनिया के विभिन्न हिस्सों में “नए” अभिजात वर्ग, जिन्होंने लोगों के नाम पर लोकतंत्र के खिलाफ विरोधाभासी रूप से विद्रोह किया है, के राजनीतिक कार्यक्रमों का एक निर्णायक विश्लेषण है। यह उस अभिजात वर्ग की सामाजिक संरचना का विश्लेषण करता है जिन्होंने कारण के बजाय प्रभाव का उपयोग करके एथेनोफोबिया के अपने संदेश को जन-जन तक पहुंचाया और चुनावी राजनीति पर…

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    Surya Kant Singh

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    January 6, 2021
  • Democracy,  Essays

    युवक!

    April 17, 2020 / 0 Comments

    युवावस्था मानव-जीवन का वसन्तकाल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हजारों बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियाँ सहस्र धारा होकर फूट पड़ती हैं। मदांध मातंग की तरह निरंकुश, वर्षाकालीन शोणभद्र की तरह दुर्द्धर्ष,प्रलयकालीन प्रबल प्रभंजन की तरह प्रचण्ड, नवागत वसन्त की प्रथम मल्लिका कलिका की तरह कोमल, ज्वालामुखी की तरह उच्छृंखल और भैरवी-संगीत की तरह मधुर युवावस्था है। उज्जवल प्रभात की शोभा, स्निग्ध सन्ध्या की छटा, शरच्चन्द्रिका की माधुरी ग्रीष्म-मध्याह्न का उत्ताप और भाद्रपदी अमावस्या के अर्द्धरात्र की भीषणता युवावस्था में निहित है। जैसे क्रांतिकारी की जेब में बमगोला, षड्यंत्री की असटी में भरा-भराया तमंचा, रण-रस-रसिक वीर के हाथ में खड्ग, वैसे…

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    Surya Kant Singh

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    अर्थार्थ : अपराधियों, हत्‍यारों, बलात्‍कारियों, बेईमानों की आज़ादी

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    December 3, 2020

    पेरू: सड़कें जागृत हो रही हैं

    November 25, 2020
  • Essays

    धार्मिक दंगे और उनके समाधान : भगत सिंह

    March 23, 2020 / 0 Comments

    कीर्ति के जून 1927 के अंक में प्रकाशित "धर्मावर फ़साद ते उन्हा दे इलाज"

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    Surya Kant Singh

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    युवक!

    April 17, 2020

    भगत सिंह: मैं नास्तिक क्यों हूँ ?

    March 23, 2020

    The Prime Causality behind the ‘Unjust’ in Society

    April 30, 2020
  • Essays,  Religion

    भगत सिंह: मैं नास्तिक क्यों हूँ ?

    March 23, 2020 / 0 Comments

    यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।

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    Surya Kant Singh

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    March 24, 2020

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