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    कलियुग से दुखी जनता को सतयुग और त्रेता में वापस खींच ले जाने के सरकारी नुस्खे

    May 13, 2020 / 0 Comments

    याद करिये, रामायण और महाभारत का पहला प्रसारण कब हुआ था? वह किस सरकार के अधीन हुआ था? क्या उस वक्त भी केवल ‘मनोरंजन’ हीं इसका ध्येय था? नहीं था, इसीलिए आज भी कई मंदिर ऐसे हैं जहां पर रामायण के किरदार राम और सीता की तरह पूजे जाते हैं, वहां बाकायदा उनकी तस्वीर स्थापित है। मेरे बचपन में जब रामायण और महाभारत का पुनः प्रसारण हो रहा था तब भी यानी नब्बे के दशक में लोग हाथ-पांव धोकर और अगरबत्तियाँ जलाकर रामायण और महाभारत देखने बैठते थे। यह इस बात को स्थापित करता है कि हमारे भीतर का भक्त मारा नहीं जा सकता। उलटे वह हल्की सी चिंगारी से…

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    Surya Kant Singh

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    अर्थार्थ : चेतना और अस्तित्व

    June 27, 2019 / 4 Comments

    जो लोग दर्शनशास्त्र से वाकिफ ना हो उन्हें बता देना उचित है की भारतीय दर्शन में हम विषयों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं–जड़ और चेतन। सामान्य भाषा में आप जड़ता से उन चीज़ों को जोड़ें जिन पर अपने आस पास हो रही घटनाओं का कोई असर नहीं होता। आज कुशासन की हदें पार कर चुकी हमारी सरकारों और क्रूरता की हदें पार करते हमारे समाज को देख कर ये निष्कर्ष आसानी से निकाला  जा सकता हैं की हम जड़ हो चुके हैं। जड़ता को चेतना का अभाव भी कहा जाता है इस लिये चेतना को समझना ज़रूरी हो जाता है।

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    Surya Kant Singh

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