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    कलियुग से दुखी जनता को सतयुग और त्रेता में वापस खींच ले जाने के सरकारी नुस्खे

    May 13, 2020 / 0 Comments

    याद करिये, रामायण और महाभारत का पहला प्रसारण कब हुआ था? वह किस सरकार के अधीन हुआ था? क्या उस वक्त भी केवल ‘मनोरंजन’ हीं इसका ध्येय था? नहीं था, इसीलिए आज भी कई मंदिर ऐसे हैं जहां पर रामायण के किरदार राम और सीता की तरह पूजे जाते हैं, वहां बाकायदा उनकी तस्वीर स्थापित है। मेरे बचपन में जब रामायण और महाभारत का पुनः प्रसारण हो रहा था तब भी यानी नब्बे के दशक में लोग हाथ-पांव धोकर और अगरबत्तियाँ जलाकर रामायण और महाभारत देखने बैठते थे। यह इस बात को स्थापित करता है कि हमारे भीतर का भक्त मारा नहीं जा सकता। उलटे वह हल्की सी चिंगारी से…

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    Surya Kant Singh

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    अर्थार्थ : डांसिंग… प्लेइंग… लिंचिंग?

    July 4, 2019 / 0 Comments

    हमारी संस्कृति का ताना-बाना पूरी तरह धर्म के इर्द-गिर्द बुना हुआ है। कई मायनों में यह जुड़ाव इस हद तक है कि धर्म और संस्कृति का भेद न के बराबर है। देश की सेना दिवंगत जवानों को श्रद्धांजलि दिये बिना युद्ध के मैदान में नहीं उतरती, वैज्ञानिक पद्धतियों से बनी फैक्टरी बिना परमात्मा को याद किये शुरू नहीं की जाती और इसी देश में व्यक्ति का धर्म पूछ कर उसे लिंच कर दिया जाता है! दी गई तीनों घटनाएं हिंदू धर्म के अंगों का सटीक उदाहरण हैं। दिवंगत जवानों को श्रद्धांजलि देना- आध्यात्म का; नए काम को शुरू करने से पूर्व परमात्मा को याद करना- संस्कृति का और व्यक्ति का…

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    Surya Kant Singh

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