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अर्थार्थ : कर्जे में कॉर्पोरेट और अवाम का पैसा लूटती सरकार !
जालान समिति के हाल के सुझाव भारतीय रिजर्व बैंक की बरबादी का सबब बन सकते हैं। जिनको पता न हो वे जान लें कि पूर्व आरबीआइ गवर्नर बिमल जालान के नेतृत्व वाली समिति ने आरबीआइ को यह सुझाव दिया है कि वह अपनी आकस्मिक निधि से भारत सरकार को 1,76,000 करोड़ रुपये सौंप दे। यह राशि आरबीआइ द्वारा किसी सरकार को दी गयी अब तक की सबसे बडी राशि होगी, वह भी तब, जब भारत सरकार ने मंदी को ही नहीं स्वीकारा है। आधिकारिक बयानों से भी यह साफ नहीं हो पाया है कि सरकार इतनी बड़ी रकम का क्या करेगी। इस बीच कयासों का दौर भी चल निकला है।
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अर्थार्थ : अबकी हालात 1930 की महामंदी से भी खतरनाक हैं! समझना ज़रूरी है…
अब यह बात स्थापित हो चुकी है कि भारत मंदी की चपेट में आ रहा है। तमाम उद्योगपतियों से लेकर बड़े औद्योगिक घरानों तक ने बयान जारी कर इस विषय पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने की असफल कोशिश की है। टेक्सटाइल और चाय उद्योग ने मंदी की खबरें न दिखाए जाने से तंग आ कर विज्ञापन ही दे डाला। अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी इस विषय को मुखर तौर से उठाया है। याद रहे कि राजन ही थे जिन्होंने 2007-08 की आर्थिक मंदी से साल भर पहले ही अमरीकी बैंकरों को चेता दिया था। मंदी से औद्योगिक उत्पादन लगातार गिर रहा है और नौकरियां जा रही हैं। बेरोज़गार हो…