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कोरोना के बाद बनने वाली ‘नयी वैश्विक व्यवस्था’ के पांच एजेंडे
कोरोना वायरस से उपजी महामारी पर बहस करते हुए अक्सर दो बातें सामने आती हैं। एक, इस त्रासदी को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। दूसरी, इसे रोकने के लिए सरकारें उतनी तत्पर नहीं दिख रही हैं। इन दोनों ही धारणाओं के पीछे एक सहज सवाल पैदा होता हैः क्या इस महामारी के पीछे कोई एजेंडा है? अगर है, तो क्या?
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अर्थार्थ : सत्य की जीत के रास्ते में ‘बड़ा षडयंत्र’ क्या है?
एक आम आदमी को भारतीय न्यायालयों पर जितना भरोसा है उतना किसी भी अन्य संस्था नहीं। यह एकमात्र ऐसी संस्था है जिसने मुश्किल दौर में भी क्रांतिकारी फैसले लेकर आम अवाम को सशक्त किया है। हमारे न्यायालयों ने न सिर्फ लोकतंत्र को बचाया है बल्कि संविधान में लोगों के विश्वास भी इन्हीं की बदौलत जीवित है। आज भी जब कमज़ोर को दबाया जाता है तो दबे स्वर में ही सही, वह कोर्ट जाने की धमकी देता है। यह भारतीय न्यायालयों पर हमारा विश्वास हीं है जो हमें ढांढस बंधाता है कि शासक के अन्यायी होने पर भी हम यहां न्याय की गुहार कर सकते हैं, चाहे उसमें कितनी भी देर…