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Is it good to be just?
Review of Plato's - "Republic".. Through the voice of his teacher Socrates, Plato defines what he considers the ideal forms of justice, leadership, social order, and philosophical discipline. At the same time, Plato tries to address the tension between the pursuit of individual self-perfection and public service.
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धार्मिक दंगे और उनके समाधान : भगत सिंह
कीर्ति के जून 1927 के अंक में प्रकाशित "धर्मावर फ़साद ते उन्हा दे इलाज"
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भगत सिंह: मैं नास्तिक क्यों हूँ ?
यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।
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अर्थार्थ : सत्य की जीत के रास्ते में ‘बड़ा षडयंत्र’ क्या है?
एक आम आदमी को भारतीय न्यायालयों पर जितना भरोसा है उतना किसी भी अन्य संस्था नहीं। यह एकमात्र ऐसी संस्था है जिसने मुश्किल दौर में भी क्रांतिकारी फैसले लेकर आम अवाम को सशक्त किया है। हमारे न्यायालयों ने न सिर्फ लोकतंत्र को बचाया है बल्कि संविधान में लोगों के विश्वास भी इन्हीं की बदौलत जीवित है। आज भी जब कमज़ोर को दबाया जाता है तो दबे स्वर में ही सही, वह कोर्ट जाने की धमकी देता है। यह भारतीय न्यायालयों पर हमारा विश्वास हीं है जो हमें ढांढस बंधाता है कि शासक के अन्यायी होने पर भी हम यहां न्याय की गुहार कर सकते हैं, चाहे उसमें कितनी भी देर…
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अर्थार्थ : क्या सरकार के इशारे पर बैंकिंग संकट को बढ़ा रहा है रिज़र्व बैंक?
भारतीय रिजर्व बैंक ने बीते मंगलवार, 24 सितम्बर को पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक से लेन-देन पर रोक लगा दी है। पीएमसी बैंक की 137 शाखाओं में से 81 मुंबई और इसके आसपास के शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस शहरी सहकारी बैंक को किसी भी प्रकार की व्यावसायिक लेन-देन करने पर रोक लगा दी है और बैंक के जमाकर्ताओं द्वारा निकाली जा सकने वाली राशि को 10,000 रुपए तक सीमित कर दिया है।
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अर्थार्थ : LNG सौदे को ‘उपलब्धि’ बताकर 7.5 अरब डॉलर की ठगी को कैसे छुपाया गया
नरेंद्र मोदी के अमरीका पहुंचने के साथ ही 7.5 अरब डॉलर के एलएनजी डील की खबर आने लगी। टेल्यूरियन इंक ने कहा कि लुइसियाना में प्रस्तावित उसके तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) टर्मिनल में हिस्सेदारी खरीदने के लिए भारत के पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड से 7.5 अरब डॉलर (53 हज़ार करोड रुपए) के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो संभवतः अमेरिका में शेल गैस के निर्यात के लिए किया गया सबसे बड़ा विदेशी निवेश हो सकता है।
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अर्थार्थ : रियल एस्टेट के ‘सरकारी’ बुलबुले में कैसे फंस गया घर का सपना
अनुकूल जन-सांख्यिकी, आवास की भारी कमी, आसान कर्ज और अर्थव्यवस्था में काले धन के वेग ने रियल एस्टेट को भारत में डेढ़ दशक तक निवेश का सबसे पसंदीदा क्षेत्र बनाए रखा। इसमें भी लगभग एक दशक हाउसिंग सेक्टर के लिए “बुल रन” का दौर था जिसके परिणामस्वरूप रियल एस्टेट हमारे समाज में सबसे विश्वसनीय निवेश के रूप में स्थापित हुआ।
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अर्थार्थ : नकारात्मक ब्याज दरें और गिरते डॉलर पर बढ़ती भारत की निर्भरता
आरबीआइ की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी विदेशी मुद्रा का स्तर बढ़ाने पर विचार कर रही है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि आरबीआइ की स्वायत्तता खतम हो चली है। आरबीआइ के गवर्नर की पात्रता और कार्यशैली से लेकर भ्रामक भाषा के प्रयोग तक तमाम सवाल उठाये जा चुके हैं। सरकार अपने एकाधिकार का प्रयोग कर के देश की सम्पत्ति से जितना निचोड़ने में सक्षम थी, निचोड़ चुकी है पर आगे लिए जाने वाले कदम भ्रष्टाचार या सिंडिकेटेड लूट नहीं बल्कि बरबादी का कारण बनेंगे!
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अर्थार्थ: पानी एक हिस्से में घुसा था, बैंकों का विलय अब पूरे जहाज़ को ले डूबेगा!
इधर बीच सरकार की ओर से जारी किये गये बयान साफ दिखाते हैं कि उसके भीतर हलचल है। रोज़ कोई नया बयान जारी कर सरकार अपने निकम्मेपन को ढंकने का प्रयास कर रही है, पर सभी घोषणाएं यही इशारा कर रही हैं कि सरकार अपनी बरबादी के ब्लूप्रिंट को लागू करने की ओर अग्रसर है। सरकारी बैंकों के विलय पर की गई प्रेस कांफ्रेंस के ठीक बाद जीडीपी के आंकड़े जारी हुए। यह दर्शा रहा है कि सरकार अपने भुलावे को कायम रखना चाहती है। विलय की घोषणा के वक्त एक पत्रकार के सवाल पर माननीया बिफर पड़ीं। अगर यह आंकड़ा पहले जारी हुआ होता तब किस तरह के सवाल…
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अर्थार्थ : कर्जे में कॉर्पोरेट और अवाम का पैसा लूटती सरकार !
जालान समिति के हाल के सुझाव भारतीय रिजर्व बैंक की बरबादी का सबब बन सकते हैं। जिनको पता न हो वे जान लें कि पूर्व आरबीआइ गवर्नर बिमल जालान के नेतृत्व वाली समिति ने आरबीआइ को यह सुझाव दिया है कि वह अपनी आकस्मिक निधि से भारत सरकार को 1,76,000 करोड़ रुपये सौंप दे। यह राशि आरबीआइ द्वारा किसी सरकार को दी गयी अब तक की सबसे बडी राशि होगी, वह भी तब, जब भारत सरकार ने मंदी को ही नहीं स्वीकारा है। आधिकारिक बयानों से भी यह साफ नहीं हो पाया है कि सरकार इतनी बड़ी रकम का क्या करेगी। इस बीच कयासों का दौर भी चल निकला है।