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कलियुग से दुखी जनता को सतयुग और त्रेता में वापस खींच ले जाने के सरकारी नुस्खे
याद करिये, रामायण और महाभारत का पहला प्रसारण कब हुआ था? वह किस सरकार के अधीन हुआ था? क्या उस वक्त भी केवल ‘मनोरंजन’ हीं इसका ध्येय था? नहीं था, इसीलिए आज भी कई मंदिर ऐसे हैं जहां पर रामायण के किरदार राम और सीता की तरह पूजे जाते हैं, वहां बाकायदा उनकी तस्वीर स्थापित है। मेरे बचपन में जब रामायण और महाभारत का पुनः प्रसारण हो रहा था तब भी यानी नब्बे के दशक में लोग हाथ-पांव धोकर और अगरबत्तियाँ जलाकर रामायण और महाभारत देखने बैठते थे। यह इस बात को स्थापित करता है कि हमारे भीतर का भक्त मारा नहीं जा सकता। उलटे वह हल्की सी चिंगारी से…
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अर्थार्थ : चेतना और अस्तित्व
जो लोग दर्शनशास्त्र से वाकिफ ना हो उन्हें बता देना उचित है की भारतीय दर्शन में हम विषयों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं–जड़ और चेतन। सामान्य भाषा में आप जड़ता से उन चीज़ों को जोड़ें जिन पर अपने आस पास हो रही घटनाओं का कोई असर नहीं होता। आज कुशासन की हदें पार कर चुकी हमारी सरकारों और क्रूरता की हदें पार करते हमारे समाज को देख कर ये निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता हैं की हम जड़ हो चुके हैं। जड़ता को चेतना का अभाव भी कहा जाता है इस लिये चेतना को समझना ज़रूरी हो जाता है।
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अर्थार्थ : अंधकार के युग में… प्रकाश की ओर… एक कदम
खबर यह है कि कोई खबर ही नहीं है । प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट के साथ शपथ ले चुके हैं, वित्त को रक्षा प्राप्त हो गयी है, और हम-आप पांच साल के लिये सो सकते हैं। जिन लोगों ने उच्च शिक्षा का प्रयास किया होगा वे जानते होंगे की पी.एच.डी. करने से पूर्व थीसिस का विषय चुनना होता है। साधारण शब्दों में, किसी विश्लेषण की शुरुआत होती है मुद्दे के चुनाव से। लेकिन भारत या यूं कहें कि सम्पूर्ण विश्व में शायद ही कोई संस्था या व्यवस्था बची हो जिसमें खोट न हो। जब सब तरफ़ हाल सामान्य रूप से खराब हों तो किस मामले को गम्भीर मान कर उसका विश्लेषण…