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The Prime Causality behind the ‘Unjust’ in Society
The human existence from the evolutionary stance appears to have landed on an ambiguous juncture where only a few can claim to have some vague idea of the future course of happenings. After millions of years of evolution and supposedly superior consciousness, one must argue that man-made systems governing almost all the facets of our lives should have evolved to perfection. Even at the least, they should have been in a better shape than they are as of now. This article is aimed at debating on our systemic errors from a philosophical perspective, their causes, effects and possible implications. It also touches upon the possible future outcomes if we continue…
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नफरत की राजनीति जनता के लिए आकर्षक क्यों है?
ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट में “ग्लोबल स्विंग टू द राइट | दक्षिणपंथ की ओर दुनिया का झुकाव ” पर अर्जुन अप्पादुरई के सार्वजनिक व्याख्यान की एक रिकॉर्डिंग दुनिया भर में सत्तावादी लोकलुभावन नेताओं और आंदोलनों के हालिया उदय का विश्लेषण करती है। “द रिवाल्ट ऑफ द एलाइट्स” पर उनका नया अंश दुनिया के विभिन्न हिस्सों में “नए” अभिजात वर्ग, जिन्होंने लोगों के नाम पर लोकतंत्र के खिलाफ विरोधाभासी रूप से विद्रोह किया है, के राजनीतिक कार्यक्रमों का एक निर्णायक विश्लेषण है। यह उस अभिजात वर्ग की सामाजिक संरचना का विश्लेषण करता है जिन्होंने कारण के बजाय प्रभाव का उपयोग करके एथेनोफोबिया के अपने संदेश को जन-जन तक पहुंचाया और चुनावी राजनीति पर…
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Was the reorganisation of J&K a precursor to something bigger?
“When deals of weapons become profit-oriented, they foster conflicts simply to justify and continue that profit-making through weapons and war.”
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युवक!
युवावस्था मानव-जीवन का वसन्तकाल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हजारों बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुई सारी शक्तियाँ सहस्र धारा होकर फूट पड़ती हैं। मदांध मातंग की तरह निरंकुश, वर्षाकालीन शोणभद्र की तरह दुर्द्धर्ष,प्रलयकालीन प्रबल प्रभंजन की तरह प्रचण्ड, नवागत वसन्त की प्रथम मल्लिका कलिका की तरह कोमल, ज्वालामुखी की तरह उच्छृंखल और भैरवी-संगीत की तरह मधुर युवावस्था है। उज्जवल प्रभात की शोभा, स्निग्ध सन्ध्या की छटा, शरच्चन्द्रिका की माधुरी ग्रीष्म-मध्याह्न का उत्ताप और भाद्रपदी अमावस्या के अर्द्धरात्र की भीषणता युवावस्था में निहित है। जैसे क्रांतिकारी की जेब में बमगोला, षड्यंत्री की असटी में भरा-भराया तमंचा, रण-रस-रसिक वीर के हाथ में खड्ग, वैसे…
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Is it good to be just?
Review of Plato's - "Republic".. Through the voice of his teacher Socrates, Plato defines what he considers the ideal forms of justice, leadership, social order, and philosophical discipline. At the same time, Plato tries to address the tension between the pursuit of individual self-perfection and public service.
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धार्मिक दंगे और उनके समाधान : भगत सिंह
कीर्ति के जून 1927 के अंक में प्रकाशित "धर्मावर फ़साद ते उन्हा दे इलाज"
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भगत सिंह: मैं नास्तिक क्यों हूँ ?
यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।
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अर्थार्थ : पहचान का संकट और संकट की विरासत
बुद्धिजीवियों ने धर्म पर काफी कुछ लिखा-बोला पर है पर मौजूदा स्थिति में वे आम जन से संवाद स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। संवेदनशील मुद्दों पर घर के बाहर “खुले में” बात करने की क्षमता वालों को अब अंगुलियों पर गिना जा सकता हैं। क्या आपको अब भी अपने अधिकारों का हनन होता नहीं दिख रहा? बाहर की हवा अब खुली नहीं है, उसमें अजीब सा भारीपन है जो केवल प्रदूषण से नहीं है। क्या बुद्धिजीवियों का दायित्व किसी बात को कह देने या लिख देने भर से खतम हो जाता है?
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अर्थार्थ : डांसिंग… प्लेइंग… लिंचिंग?
हमारी संस्कृति का ताना-बाना पूरी तरह धर्म के इर्द-गिर्द बुना हुआ है। कई मायनों में यह जुड़ाव इस हद तक है कि धर्म और संस्कृति का भेद न के बराबर है। देश की सेना दिवंगत जवानों को श्रद्धांजलि दिये बिना युद्ध के मैदान में नहीं उतरती, वैज्ञानिक पद्धतियों से बनी फैक्टरी बिना परमात्मा को याद किये शुरू नहीं की जाती और इसी देश में व्यक्ति का धर्म पूछ कर उसे लिंच कर दिया जाता है! दी गई तीनों घटनाएं हिंदू धर्म के अंगों का सटीक उदाहरण हैं। दिवंगत जवानों को श्रद्धांजलि देना- आध्यात्म का; नए काम को शुरू करने से पूर्व परमात्मा को याद करना- संस्कृति का और व्यक्ति का…